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मां जलदेवी बनी बावड़ी, टोड़ारायसिंह

 मां जलदेवी बनी बावड़ी की पहचान
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टोडारायसिंह. टोडारायसिंह से 14 किमी. दूर झिराना मार्ग स्थित बावड़ी गांव मां जलदेवी माता का मन्दिर जन-जन की आस्था व श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है। सन् 1920 में बावड़ी निवासी तत्कालीन ठा. उदयसिंह के स्वप्न में माताजी ने दर्शन दिए तथा बाग वाले कुएं में होने की बात कही। इस पर उन्होंने कुए से पानी व मिट्टी निकलवाई जहां दीवार के एक कोटर (ताक) में माताजी की मूर्ति मिली, जिसे निकालकर नजदीक बरगद के पेड़ के नीचे निर्मित कच्चे चबूतरे पर स्थापित किया गया। सन् 1960-62 में टोंक विधायक रहे चुके ठा. उदयसिंह के पुत्र कु. अजीतसिंह ने मंदिर का निर्माण कराया। जलदेवी मंदिर तोडा राय सिंह शहर के पास बावड़ी गाँव में स्थित है। यह मंदिर जलदेवी को समर्पित है और इसका निर्माण 250 वर्ष पूर्व हुआ था। लोगों का ऐसा विश्वास है लगभग 400 वर्ष पहले तक देवी की मूर्ति पास के एक कुएं में थी। चैत्र पूर्णिमा के समय इस मंदिर में तीन दिन का एक त्यौहार मनाया जाता है।
हां मन्नतें पूरी होने पर लोग जागरण व सवामणी करते है। मंदिर विकास समिति अध्यक्ष अजयसिंह ने बताया कि वर्तमान में मंदिर धर्मशाला का निर्माण चल रहा है।
छोटे बाजार में लगता है हाट
वर्ष में दो बार चैत्र व शारदीय नवरात्रों में माता जलदेवी के दर्शनार्थ श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है, इस बीच नो दिन तक मेला भरता है। स्थिति यह है कि बस स्टेण्ड से पन्द्राहेड़ा रोड व माताजी मंदिर तक करीब डेढ़ से दो किमी. क्षेत्रफल में हाट (दुकानें) लगता है, जिसमें सैकड़ों परिवार रोजगारन्मुख होते है। बावड़ी गांव के विकास में जलदेवी मंदिर की
भूमिका अहम है।
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टोडारायसिंह. कस्बे में सुख समृद्धि की कामना को लेकर  घर-घर कुलदेवी की पूजा-अर्चना की जाएगी। इधर, बावड़ी स्थित मां जलदेवी माता के दर्शनार्थ श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी।

जलदेवी
टोडारायसिंह के बावड़ी माताजी के मंदिर में मां जलदेवी के दर्शनार्थ भीड़।
टोडारायसिंह. कस्बे समेत ग्रामीण क्षेत्र में सुख समृद्धि की कामना को लेकर बुधवार को घर-घर कुलदेवी की पूजा-अर्चना की जाएगी। इधर, बावड़ी स्थित मां जलदेवी माता के दर्शनार्थ श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। महिलाएं अपन नवजात व परिजनों के साथ मां के दरबार में पहुंची। जहां श्रद्धा से शीश झुकाकर मन्नत मांगी तथा पूजा अर्चना कर प्रसाद चढ़ाया। मंदिर में सजाई गई माता की झांकी के दर्शन किए। सुबह से माता के दर्शनों का श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। टोडारायसिंह, मालपुरा, पन्द्राहेड़ा, हमीरपुर, टोंक समेत अन्य मार्गो पर दुपहिया व चौपहिया वाहनों की रेलमपेल रही। मंदिर से प्रत्येक मार्ग पर करीब एक किमी तक लोगों की पैदल, कनक दण्डवत करने वाले श्रद्धालुओं की आवाजाही रही। मंदिर से मुख्य बस स्टेण्ड तथा पन्द्राहेड़ा तिराहे तक सजी खिलौने, प्रसाद व अन्य घरेलु सामानों की दुकानों पर लोगों के खरीददारी करने से मेले जैसा माहौल रहा।
histroy

आषाढ़ मास के गुप्त नवरात्रों का प्रारंभ हो चुका है। इसके साथ ही हमने आपको जानकारी दी कि इस दौरान देवी दुर्गा की 10 महाविद्याओं की पूजा का खास विधान है। हालांकि कुछ मान्यताओं के अनुसार इन नवरात्रों में देवी दुर्गा की तांत्रिक और सात्विक दोनों ही तरह की पूजा संपन्न की जा सकती है। परंतु आषाढ़ मास में एक ऐसी देवी की पूजन का विधान है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। जी हां धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गुप्त नवरात्रों में विशेष रूप से जल देवी का पूजन किया जाता है। बहुत से लोग नहीं जानते कि इन्हें माता दुर्गा का ही एक रूप माना जाता है जिसके चलते देश के कई राज्यों में इनकी आराधना भी की जाती है। इतना ही नहीं बल्कि कई जगहों पर जल देवी को समर्पित मंदिर भी स्थित है। इनमें से सबसे खास मध्यप्रदेश में स्थापित जल देवी के मंदिर को माना जाता है।

बता दें हम जिस मंदिर की बात कर रहे हैं वह राजस्थान के राजसमंद के दरीबा में स्थित सांसेरा गांव में है। बता़ा जाता है राजस्थान के ही टोहारायसिंह से 9 कि.मी की दूरी पर टोडा झिराना रोड के ग्राम बावड़ी में जल देवी दुर्गा माता नामक मंदिर स्थित है जो बहुत ही प्रसिद्ध है। यहां पर नवरात्रों में माता का मेला लगता है।

लोकमत के अनुसार ग्राम बावड़ी में स्थित मातेश्वरी भगवती जल देवी दुर्गा के मंदिर का इतिहास काफी  पौराणिक है। कहा जाता है कि करीबन 125 वर्ष पहले यहां पर अकाल पड़ गया था और देवी प्रकोप के चलते एक भयंकर महा मैं अभी फैल गई थी। इतना ही नहीं इस बीमारी से कई लोग मर गए थे। तब इसी गांव के उमा सागर जलाशय पर एक महात्मा समाधि स्थित होकर देवी प्रार्थना में लीन हो गए। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवी भगवती ने उन्हें साक्षात अर्थ रात्रि में दर्शन दिए ।

उन महात्मा को दर्शन देकर देवी ने बताया कि उनकी एक मूर्ति इस ग्राम के दक्षिण की तरफ मौजूद कुएं में कई वर्षों से जलमग्न है जो कि इस जलाशय के पास है। इस गांव की जो भी दुर्दशा हो रही है वह उस मूर्ति की दुर्दशा के कारण है इसलिए उसे जला से से निकालकर स्थापित करो।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महात्मा ने देवी की आज्ञा का पालन करते हुए उनकी मूर्ति को जलाशय से निकालकर विधि पूर्वक युक्त करवाकर चबूतरे पर स्थापित करवाया जहां पर आगे चलकर मंदिर का निर्माण किया गया।

मंदिर को देखने पर पता लगता है कि यहां चांदी के सिक्के भी जुड़े हुए हैं। इसके अलावा यहां एक अक्षय दीपक स्थापित है जो निर्विघ्न एवं अनवरत चलता रहता है।

जल देवी नामक इस देवी के दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं और मुरादे मांगते हैं। प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल पूर्णिमा यहां विराट मेला लगता है और इसके अलावा गुप्त और शादी नवरात्रि दोनों में ही यहां माता की धूमधाम से पूजा की जाती है।

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