मां जलदेवी बनी बावड़ी, टोड़ारायसिंह
वर्ष में दो बार चैत्र व शारदीय नवरात्रों में माता जलदेवी के दर्शनार्थ श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है, इस बीच नो दिन तक मेला भरता है। स्थिति यह है कि बस स्टेण्ड से पन्द्राहेड़ा रोड व माताजी मंदिर तक करीब डेढ़ से दो किमी. क्षेत्रफल में हाट (दुकानें) लगता है, जिसमें सैकड़ों परिवार रोजगारन्मुख होते है। बावड़ी गांव के विकास में जलदेवी मंदिर की
भूमिका अहम है।
टोडारायसिंह. कस्बे में सुख समृद्धि की कामना को लेकर घर-घर कुलदेवी की पूजा-अर्चना की जाएगी। इधर, बावड़ी स्थित मां जलदेवी माता के दर्शनार्थ श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी।
आषाढ़ मास के गुप्त नवरात्रों का प्रारंभ हो चुका है। इसके साथ ही हमने आपको जानकारी दी कि इस दौरान देवी दुर्गा की 10 महाविद्याओं की पूजा का खास विधान है। हालांकि कुछ मान्यताओं के अनुसार इन नवरात्रों में देवी दुर्गा की तांत्रिक और सात्विक दोनों ही तरह की पूजा संपन्न की जा सकती है। परंतु आषाढ़ मास में एक ऐसी देवी की पूजन का विधान है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। जी हां धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गुप्त नवरात्रों में विशेष रूप से जल देवी का पूजन किया जाता है। बहुत से लोग नहीं जानते कि इन्हें माता दुर्गा का ही एक रूप माना जाता है जिसके चलते देश के कई राज्यों में इनकी आराधना भी की जाती है। इतना ही नहीं बल्कि कई जगहों पर जल देवी को समर्पित मंदिर भी स्थित है। इनमें से सबसे खास मध्यप्रदेश में स्थापित जल देवी के मंदिर को माना जाता है।
बता दें हम जिस मंदिर की बात कर रहे हैं वह राजस्थान के राजसमंद के दरीबा में स्थित सांसेरा गांव में है। बता़ा जाता है राजस्थान के ही टोहारायसिंह से 9 कि.मी की दूरी पर टोडा झिराना रोड के ग्राम बावड़ी में जल देवी दुर्गा माता नामक मंदिर स्थित है जो बहुत ही प्रसिद्ध है। यहां पर नवरात्रों में माता का मेला लगता है।
लोकमत के अनुसार ग्राम बावड़ी में स्थित मातेश्वरी भगवती जल देवी दुर्गा के मंदिर का इतिहास काफी पौराणिक है। कहा जाता है कि करीबन 125 वर्ष पहले यहां पर अकाल पड़ गया था और देवी प्रकोप के चलते एक भयंकर महा मैं अभी फैल गई थी। इतना ही नहीं इस बीमारी से कई लोग मर गए थे। तब इसी गांव के उमा सागर जलाशय पर एक महात्मा समाधि स्थित होकर देवी प्रार्थना में लीन हो गए। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवी भगवती ने उन्हें साक्षात अर्थ रात्रि में दर्शन दिए ।
उन महात्मा को दर्शन देकर देवी ने बताया कि उनकी एक मूर्ति इस ग्राम के दक्षिण की तरफ मौजूद कुएं में कई वर्षों से जलमग्न है जो कि इस जलाशय के पास है। इस गांव की जो भी दुर्दशा हो रही है वह उस मूर्ति की दुर्दशा के कारण है इसलिए उसे जला से से निकालकर स्थापित करो।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महात्मा ने देवी की आज्ञा का पालन करते हुए उनकी मूर्ति को जलाशय से निकालकर विधि पूर्वक युक्त करवाकर चबूतरे पर स्थापित करवाया जहां पर आगे चलकर मंदिर का निर्माण किया गया।
मंदिर को देखने पर पता लगता है कि यहां चांदी के सिक्के भी जुड़े हुए हैं। इसके अलावा यहां एक अक्षय दीपक स्थापित है जो निर्विघ्न एवं अनवरत चलता रहता है।
जल देवी नामक इस देवी के दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं और मुरादे मांगते हैं। प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल पूर्णिमा यहां विराट मेला लगता है और इसके अलावा गुप्त और शादी नवरात्रि दोनों में ही यहां माता की धूमधाम से पूजा की जाती है।
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